सरग ह जेखर एड़ी के धोवन, जग-जाहरा जेखर सोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईयां हवय मोर॥
कौसिल्या जिहां के बेटी, कौसल छत्तीसगढ़ कहाइस,
सऊंहे राम आके इहां, सबरी के जूठा बोइर खाइस।
मोरध्वज दानी ह अपन, बेटा के गर म आरा चलाइस,
बाल्मिकी के आसरम म, लवकुस मन ह शिक्षा पाइन।
चारों मुड़ा बगरे हे जिहां, सुख-सुम्मत के अंजोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईयां हवय मोर॥
बीर नारायन बांका बेटा, आादी के अलख जगाए,
पंडित सुन्दरलाल शर्मा, समता के दिया जलाए।
तियाग-तपस्या देस प्रेम के, कण-कण ह गीत गाए,
माटी बर जीना-मरना, जिहां के धरम-करम आए।
जात-धरम के भेद नहीं, ठाहिल हे मया के डोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईया हवय मोर॥
महानदी, अरपा, पइरी के लहरा लहर-लहर लहराए,
झूम-झूम के धान बाली, सुवा, करमा-ददरिया गाए।
सिरपुर, राजिम, भोरमदेव के, पखरा हर गौरव गाए,
भेलई, कोरबा, बैलाडीला, नित नवा सुरुज उगाए।
नांगर बोहे, नंगरिहा, के, जांगर बांहा हवय सजोर।
असन धरती हवय मोर, अइसन भुंईयां हवय मोर॥
रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे, मन मंजूर ह लाहके,
नंदिया-तरिया पइरी बाजय, मन मउहा कस माहके।
खेत-खार, जंगल-पहाड़, अंगरा कस परसा दाहके,
मया-पिरित के अमरीत, पी, सुवा-कोइली ह चाहके।
कबीर बानी, पंथी-पंडवानी, गूंजे गांव गली-खोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईंया हवय मोर॥
बड़ सरसिधवा इहां के मनखे, मया म घेंच कटाथे,
भुईंयां म अपन ह सो के, पहुना ल पलंग सोवाथे।
सगा-पहुना तो, सऊंहत, देवता धामी कस मान पाथे,
जेन इहां आथे पिरित म इहें के होके रही जाथे।
बोली बोले मंदरस कस, मया-पिरित म चिभोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईया हवय मोर॥
अटकन-मटकन बिल्लस-बिरो, बांटी-भौंरा, अल्ली-दुल्ली,
गली-खोर दईहान म माते, खो-खो कबड्डी फुगडी।
मेला-मड़ई के मजा का कहिबे, संगी झूले ढेलुवा रहचुली,
छन-छन, छन-छन चुरी बाजे, बिजली कस लउके फुल्ली।
देवारी के दिया दुलारे, फागुन ह रंग म घोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईया हवय मोर॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब रहिथें जुरमिल के,
मनखे बर मया संदेसा, गीता-कुरान-बाइबिल के।
मनखे पन के मरजाद इहां, देखव तो दरपन दिल के,
मया के फुलवारी म जम्मो, फूल महमहाथे खिल के।
परे-डरे, गिरे-अपटे ल, संगी-साथी रेंगय अगोर।
अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुंईया हवय मोर॥
-डॉ. पीसी लाल यादव